-रवि मोंगा-
मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी का हालिया डबवाली दौरा, जो मुख्य रूप से नशे के खिलाफ जागरूकता फैलाने के लिए था, अपने पीछे कई सवाल छोड़ गया है। एक तरफ जहां 'रन फॉर ड्रग फ्री हरियाणा' मैराथन ने शहर को जोश से भर दिया, वहीं दूसरी ओर त्रिवेणी शहर के लोगों को सिवाय मुख्यमंत्री के दर्शनों और एक अधूरी उम्मीद के, कुछ भी ठोस हासिल नहीं हुआ।
डबवाली के लिए सबसे बड़ा सपना है, पूर्ण जिला बनने का। जब एक पत्रकार ने मुख्यमंत्री से इस बारे में सवाल किया, तो उनका जवाब था, होगा सपना पूरा, जब कोई लाइन में लगा हो तो उसका सपना पूरा होता है। इस सकारात्मक जवाब ने लोगों की उम्मीदों को मरने नहीं दिया। यह स्पष्ट है कि डबवाली का जिला बनने का सपना पूरा होगा और जरुर होगा, यह सरकार की प्राथमिकता सूची में कहीं न कहीं जीवित है। अब देखना यह है कि सरकार कब इस सपने को हकीकत में बदलती है।
लेकिन इस सीएम के इस दौरे की चमक के पीछे कई कमियां भी उजागर हुई-
1. प्रभावशाली जन नेता का अभाव:
बड़ा सरकारी आयोजन बनाए जाने के कारण मैराथन में भले ही भारी भीड़ उमड़ी, लेकिन भाजपा का स्थानीय कैडर अपनी छाप छोड़ने में नाकाम रहा। ऐसा कोई प्रभावशाली जन नेता नज़र नहीं आया जो मुख्यमंत्री के सामने डबवाली की प्रमुख मांगों को दमदार तरीके से उठा सके। किसी पार्टी नेता ने मुख्यमंत्री के सामने डबवाली की मांगे रखी ही नहीं। न ही यह प्रयास हुआ कि सीएम को जोर देकर कहा जाए कि डबवाली आपसे बहुत सी उम्मीद लगाए बैठी है। जनाब आप आए हैं तो अपने पिटारे से डबवाली के लिए कुछ तो निकालें। अच्छा राजनेता तो इसी प्रकार जनता की आवाज उठाता है ताकि बाद में भी वह जनता का सामना कर सके। वैसे जनता अपनी व्यक्तिगत शिकायतों के कागज भी लेकर आई थी, लेकिन पार्टी का कोई नेता उन्हें मुख्यमंत्री से मिलवाने या उनकी समस्याओं का समाधान करवाने में मदद करता नजर नहीं आया।
2. मांग पत्र में प्रमुख मांग ही गायब:
सबसे हैरानी की बात यह रही कि पार्टी की तरफ से जो मांग पत्र मुख्यमंत्री को सौंपा गया, उसमें डबवाली को जिला बनाने की सबसे अहम मांग को ही शामिल नहीं किया गया। यह स्थानीय नेतृत्व की उदासीनता या रणनीति की कमी को दर्शाता है। अगर एक पत्रकार ने हिम्मत करके यह सवाल नहीं उठाया होता, तो यह महत्वपूर्ण मुद्दा अनसुना ही रह जाता।
3. अव्यवस्था और सुरक्षा पर प्रश्नचिन्ह :
मैराथन रूट पर सड़कों की लीपापोती करने का सवाल अलग है। मैराथन के दौरान सुरक्षा और व्यवस्था भी सवालों के घेरे में रही। जिन सड़कों पर धावक दौड़ रहे थे, उन्हीं पर मुख्यमंत्री का काफिला गुजर गया। अधिकारियों और अन्य वाहनों के भी रूट पर आने-जाने से प्रतिभागी खुद को असुरक्षित महसूस कर रहे थे। एक जागरूकता अभियान के दौरान ऐसी अव्यवस्था सुरक्षा प्रोटोकॉल पर सवाल खड़े करती है।
4. मैराथन के बाद अब नेताओं में नंबर बनाने की दौड़:
मुख्यमंत्री के जाने के बाद, उन नेताओं और कार्यकर्ताओं में नंबर बनाने की दौड़ लगी है जो किसी न किसी तरह उनके साथ फोटो खिंचवाने में कामयाब हो गए। अक्सर चर्चा में बने रहने वाले एक दलबदलू ने तो किसी प्रकार से सीएम को गुलदस्ता भेंट कर दिया और अब खुद को सबसे बड़ा नेता साबित कर नंबरो की दौड़ का विजेता बनने के प्रयास में है। बताया जाता है कि इस चक्कर में उसने हजारों रुपए भी फूंक दिए। पार्टी के अन्य प्रमुख लोग हैरान-परेशान तो हैं लेकिन उनके पास भी सीएम के साथ खिंचवाई तस्वीरें दिखाने के अलावा कोई चारा नही है। सीएम के दौरे में यह तस्वीरें ही उनकी उपलब्धि कही जा सकती है।