पब्लिक मंच नेटवर्क, डबवाली
-राजेश जैन काला, महामंत्री जैन समाज
20 अगस्त से 27 अगस्त तक चले जैन धर्म के पर्यूषण पर्व का आज अंतिम दिन है। आखिरी दिन को संवत्सरी महापर्व के रूप में मनाया जाता है जिसे क्षमापर्व भी कहते हैं। दुनियां में इस बात को सभी खुले दिल से स्वीकार करते हैं कि क्षमा सबसे बड़ी चीज है और इस भावना के साथ आप पूरी दुनिया का दिल जीत सकते हैं। क्षमा ऐसी चीज है, जिससे आत्मशुद्धिकरण होता है। जैन धर्म और संस्कृति में संवत्सरी को महापर्व की संज्ञा दी गई है और इसे एक आध्यात्मिक पर्व माना गया है। महापर्व संवत्सरी का पावन दिन सबके लिए एक विशेष प्रेरणा लेकर आता है। यह दिन वास्तव में प्रतिक्रमण, आत्म-निरीक्षण, आत्म-परीक्षण का दिन है। आलोचना से हमारे भवों-भवों के संचित कर्म क्षय होते हैं।
जैसे कांटा चुभने पर सारी शरीर में वेदना होती है और कांटा निकल जाए तो शरीर असीम सुख प्राप्त होता है, उसी प्रकार आलोचना से मन में कोई कांटा नहीं रहता। यहां पर आलोचना का आशय खुद के भीतर के दोषों को प्रकट करने से है। आलोचना भीतर के ऋजु-भाव को उत्पन्न करती है। स्वयं आलोचना से मन के समस्त विकार बाहर निकल जाते हैं।
भगवान महावीर कहा है कि शिष्य को गुरु से कोई भी बात छुपानी नहीं चाहिए। बच्चे की भांति सरल होकर समस्त बातें कह देनी चाहिए। आपने जीवन में जो भी कर्म किए हैं, चाहे वह अच्छे हैं या बुरे, उसका संपूर्ण विवरण गुरु के सामने कर देना चाहिए। भगवान महावीर ने कहा है कि हम सबने अनमोल जीवन पाया है, ऐसे में आप सोचें कि क्या दो पल भी सुख के बीते हैं।
जीवन में मन के मैल को धुलना बहुत जरूरी है। एक बार आप इसमें सफल रहे तो आप सही मायने में भीतर से शुद्ध और पवित्र हो जाएंगे। दरअसल, सम्वत्सरी पर्व ऐसा पर्व है, जिसमें इस विशेष मौके पर सबसे मैत्री, वात्सल्य, आत्मीयता का संबंध जोड़ने का प्रयास करना चाहिए। आपको खुश होना चाहिए कि जीवन में ऐसे कई अवसर आपके सामने आ रहे हैं, जब आप सही मायने में खुद का आत्मविश्लेषण कर पाएं। इसलिए यह दिन खुशी के साथ मनाए जाने का दिन है। जब आप आत्म गुणों को विकसित करते हैं, तो जीवन में खुद ब खुद खुशी का संचार होने लगता है। खास तौर पर पर्व के इस इन पर हर किसी को शांत भाव के साथ रहना चाहिए। अपने क्रोध को वश में रखने की कोशिश करें। क्रोध आने पर आप विचार करें कि क्रोध का मूल कहां हैं और क्रोध के कारण पर विचार करें। ऐसे समय में जरूरी है कि आप आत्म भावों को समझें।
’इस पर्व के दौरान सालभर की गलतियों और भूल के लिए एक-दूसरे से क्षमा मांगी जाती है, तो वहीं ज्यादातर लोग व्रत-तप-संयम में लीन होकर आत्मसाधना करते हैं। सच में यह अपने तरह का अनोखा पर्व है। इस अवसर पर जरूरी है कि आप खुले दिल से सबके प्रति क्षमा मांगें। जिन्दगी में जाने-अनजाने बहुत से पाप हो जाते हैं उसके लिए हमें सृष्टि के सभी जीवों से क्षमा मांगनी चाहिए।